सर्दी की मुस्काई धूप हो
गर्मी की ठंडी छांव हो तुम
भागते दौड़ते इस शहर में
मेरा अलसाया सा एक गाँव हो तुम
हँसती चहचहाती
पहाड़ों से नीचे आती
नीली सी नदी का
चंचल सा बहाव हो तुम
पल पल बदलते इस शहर में
मेरा पहचाना सा एक गाँव हो तुम
मुश्किलों में आगे बढ़ते
साहस का पथ गढ़ते
उगते हुए सूरज के
निश्चयी पाँव हो तुम
संशय भरे आडंबरी इस शहर में
मेरा आश्वस्त सा एक गाँव हो तुम
–
अभिनव
२४ सितम्बर २०१६